आज की नारी
क्यूँ है नारी आज भी
बनी आदमी की गुलाम ।
जलते अंगारों पर चलती
फिर भी है बदनाम ।।
हर डगर पर मोड, मोड, पर
करती है समझौता ।।
कन्या पत्नी दिलबर फिर भी
लगे उसी का सौदा ।।
क्यूँ है शक्ति आज भी,
पल हर पल है मरती ।
होठों पर है हंसी कमल की,
दिल में आंसू भरती ।।
तन नारी का जितना कोमल,
मन तो उससे गहरा ।
लौटा दो सम्मान मेरा, बोले,
दिल का कतरा कतरा ।।
नारी तो ममता की मूरत,
प्यार का बसेरा ।
अंधेरी राहों में है,
आशा का नया सवेरा ।।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता: ।
अपमानित करें, जो भी घर,
उसे संकट घेरे रहता ।।
शिवजी भी उस शक्ति का,
है ध्यान हमेशा करते ।
शक्ति रूठ जाये तो,
शिवजी भी शव हो जाते ।।
नारी के मिलने से ही,
मानव है पूर्ण बनता ।
अर्धनारीश्वर महेश का,
रूप यही है कहता ।।
तो भार्इ मेरे, नारी को
पैरों की धूल ना समझो ।
पैदा होने से पहलेऽ,
उसे ऐसे तो ना कुचलों ।।
कितने धर्म निभाती है वो,
बनकर कन्या बहेन माँ ।
प्यार और बलिदान की,
कोर्इ ऐसी मिसाल कहाँ ।।
ए नारी तुझको तन मन से
करते हैं हम प्रणाम ।
जहाँ मे कोर्इ ना तुझसा,
तुझे दुनियाँ करे सलाम ।।
श्रीहरी गोकर्णकर
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